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[ घिहिलास अनन्त गुण अपनी महिमा को धारण करके विराजमान हैं और प्रत्येक गुण में अनन्त शक्ति-प्रतिशक्ति हैं । अनन्त महिमा को धारण करनेवाली प्रत्येक शक्ति की अनन्त पर्यायें हैं और वे सब प्रत्येक प्रदेश में हैं और ऐसे असंख्यात प्रदेश अपने अखण्डित प्रभुत्व को धारण करके अपनी प्रदेशसत्ता के आधार से हैं । अतः प्रदेशसत्त्व का प्रभुत्व सभी गुणों के प्रभुत्व का कारण है।
सूक्ष्मसत्ता का प्रभुत्व भी अनन्त गुणों के प्रभुत्व का कारण है । यदि सूक्ष्मगण न हो तो सभी द्रव्य स्थूल होकर इंद्रियग्राह्य हो जावेंगे और तब वे अपनी अनन्त महिमा को धारण न कर सकेंगे, अतः सब गुरणे अपनी महिमा सहित सूक्ष्म सत्ता के प्रभुत्व से हैं । ज्ञान का सत् सूक्ष्म है, अत: इन्द्रियग्नाह्य नहीं है - ऐसे ही अनन्त गुणों का सत् सूक्ष्म है । अत. अनन्त महिमा को धारण किये हैं। क्योंकि अनन्त गुणों की सत्ता का प्रभुत्व एक सूक्ष्मसत्ता की प्रभुता से है।
इसीप्रकार सभी गुणों का प्रभुत्व पृथक्-पृथक् जानना चाहिये । बहुत विस्तार के भय से वहाँ नहीं लिखा है। पर्याय का प्रभुत्व
पर्याय के परिणमनरूप वेदकभाव के द्वारा स्वरूपलाभ, विश्राम या स्थिरता होती है, वह वस्तु के सर्वस्व को वेदन