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जीवनशक्ति या जीवत्वशक्ति ]
समाधान :- जो चैतन्य शक्ति (चितिशक्ति) है, वह जड़ के प्रभाव स्वरूप है और ज्ञानचेतना प्रादि अनन्त चेतनामों को धारण किये है, अतः यदि अनन्त चेतनाओं की प्रकाशरूप चित्शक्ति होवे तो जीवनशक्ति रहती है । चेतना के प्रभाव में जीव का अभाव है। चेतना प्रकाशरूप है । अनन्त गुण-पर्यायरूप चतन्यप्राणों को धारण करके जीवनशक्ति सद जीवित रहती है । विशेषतः गुणतत्त्व, पर्यायतत्त्व और द्रव्यतत्त्व - इन तीनोंमय जीवतत्त्व को जीवनशक्ति प्रकाशित करती है, अतः जब चेतनालक्षण का प्रकाश सदा प्रकाशित रहता है, तब जीवत्व नाम प्राप्त होता है, क्योंकि जीववस्तु का लक्षण चेतना है ।
तथा चितिशक्ति को पृथक् कहने का कारण यह है कि चेतनशक्ति अपनी अनन्त प्रकाशरूप महिमा को धारण करती है - यही दिखाने के लिए उसे पृथक् कहा है । वास्तव में देखा जाये तो यह लक्षण जीवनशक्ति का ही है । जैसे सामान्यचेतना चेतनाओं की पुञ्जरूप है और विशेषचेतना ज्ञानचेतना, दर्शनचेतना आदि अनन्त रूप है । सामान्य चेतना से विशेषचेतना पृयक नहीं है। विशेष चेतना के बिना चेतना का स्वरूप जाना नहीं जा सकता । इसीप्रकार जीवन शक्ति से चेतनाभाव पृथक् नहीं है, परन्तु चेतनाभाव का विशेष कथन किए बिना जीवनशक्ति का स्वरूप जाना नहीं जा सकता ।