________________
नयविवरण ]
[७७ (१३) स्वभाव गुप्त है तथा प्रगद परिणमन करता है, उसकी नास्ति नहीं है -- ऐसा जो अस्तित्वभाव है, वह भी निश्चय है।
इसप्रकार ऐसे-ऐसे भावों को ही निश्चयसंज्ञा जाननी चाहिए - ऐसा जिनागम में कहा गया है । ऋजुसूत्रनय
प्रत्येक समय में जो परिणति हो रही है, उसे 'सूक्ष्म ऋजुसूत्र' कहते हैं । तथा जो बहुत काल को मर्यादा सहित परिणति होती है अर्थात् जो स्थूल पर्याय है, उसे 'स्थूलऋजुसूत्र' कहते हैं । शब्दनय
जो दोष रहित शब्द का शुद्ध कथन किया जाता है, उसे 'शब्दन य' कहते हैं । जितने शब्द हैं, उतने ही नय हैं । समभिरहनय
अनेक अर्थों में जो एक अर्थ मुख्यता को प्राप्त होता है, उसे 'समभिरूड़' कहते हैं । जैसे 'गो' शब्द के अनेक अर्थ हैं, फिर भी वह 'गाय' के अर्थ में ही समभिरूढ़ है ।
१. मैया भगवतीदास कृत 'अनेकार्थं नाममाला' में निम्न दोहे द्वारा मो शब्द के अनेक अर्थ बताये हैं :
गो पर गो तर गो विसा, गो फिरना प्राकास । गो इन्द्री जल छन्द पुनि, गो ठानी जन भास ॥५॥