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निश्चयनप ]
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निर्जरा, बंध और मोक्ष की परिणतियों के द्वारा निरूपित करना व्यवहार है।
जितने भी वचनपिंड द्वारा कथन हैं, वे सब व्यवहार नाम को प्राप्त होते हैं। ऐसे-ऐसे आत्मा से जो अन्य हैं, वे सर्व व्यवहार नाम को प्राप्त होते हैं । एक सामान्य से - संक्षेप में व्यवहार का इतना अर्थ जानना । ___इतना ही व्यवहार जानना कि जिस भाव का वस्तु से अव्यापकरूप सम्बन्ध है, वस्तु के साथ व्याप्य-व्यापक एकमेक सम्बन्ध नहीं है; वह व्यवहारनाम को प्राप्त होता है - ऐसा व्यवहारभाव का कथन द्वादशांग में प्रचलित है, अतः जानना चाहिये।
इसप्रकार व्यवहार का स्वरूप कहा । निश्चयनय
"जेसिं गुणाग पचयं रिणयसहायं च प्रमेयभावं च । बच्चपरिणमणाधोरणं, तं पिच्छयं भरिणयं ववहारेण ।। येषां गुणानां प्रचर्म, निजपावं च प्रभेदभावं च । द्रव्यपरिणमनायोनं' तन्निश्चयं भगितं व्यवहारेण ॥
येषां गुणानां प्रचयम् एकसमूहं तं निश्चयम् । पुनः येषां द्रव्य-गण-
पर्यायाणां निजस्वभावं निजजातिस्वरूपं तं निश्चयम् । पुनः येषां द्रव्यगुणानां मुरगशक्तिपर्यायाणां यं अभेदभाव एकप्रकाशं तन्निश्चयम् । पुनः येषां द्रव्यारणां,