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व्यवहारनय के सूचक कुछ उदाहरण ]
[ ६६ अनन्य-प्रदेशों के द्वारा ही भेद करना । एक द्रव्य या एक वस्तु की विधि की अपेक्षा अस्ति तथा प्रविधि की अपेक्षा नास्ति करना।
एक ही वस्तु के द्रव्य, सत्त्व, पर्यायो, अन्वयी, अर्थ, नित्य इत्यादि नाम भेद करना । एक ही जीव के प्रात्मा, परमात्मा, ज्ञानी, सम्यक्त्वी, चारित्री, सुख, वीर्यधारी, दर्शनी, चिदानन्द, चैतन्य, सिद्ध, चित्, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, मतिज्ञानी और श्र तज्ञानी आदि के द्वारा भेद करना।
ज्ञान के जोधक ज्ञप्ति प्रादि नामभेद करना । सम्यक्त्व के आस्तिक्य, श्रद्धान, नियत, प्रतीति, तत्, एतत् आदि नामभेद करना । चारित्र के प्राचरण, विश्राम, समाधि, संयम, समय, एकान्तमग्न, स्थगित, अनुभवन, प्रवर्तन आदि नामभेद करना । सुख के आनन्द, रसस्वाद, भोगतृप्ति, संतोष आदि नामभेद करना । वोर्य के बल, शक्ति, उपादान, तेज और प्रोज आदि नामभेद करना । अशुद्ध के विकार, विभाव, प्रशुद्ध, समल, परभाव, संसार, आस्रव, रंजकभाव, क्षणभंग और भ्रम आदि नामभेद करना । इसीप्रकार अन्य एक-एक के नाममात्र से भेद करना ।
एक ज्ञान के मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान पर्याय के द्वारा भेद करना। इसीतरह ज्ञान,