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सामान्य-विशेषात्मक वस्तु भौर स्याद्वाद!
सकलज्ञय को जाने - वह 'विशेषज्ञान' है । इसीप्रकार सभी गुणों में सामान्य और विशेष हैं ।
सामान्य और विशेष के द्वारा वस्तु प्रगट होती है। वही कहते हैं :- यदि वस्तु में सिर्फ सामान्य ही कहा जावे तो विशेष के बिना वस्तु का गुण नहीं जाना जा सकता और गुरण के बिना वस्तु नहीं जानी जा सकती। अतः सामान्य को विशेष प्रकट करता है और यदि सामान्य न हो तो विशेष कैसे उत्पन्न हो ? अतः विशेष को सामान्य प्रकट करता है । इसप्रकार वस्तु सामान्य-विशेषमय सिद्ध होती है।
शंका :- सामान्य अन्वयशक्ति को कहते हैं और विशेष व्यतिरेक शक्ति को कहते है - यह कैसे सिद्ध होता है ।
समाधान :- अन्वयशक्ति युगपत् सदा अपने स्वभावरूप रहती है, इसमें कोई विशेष नहीं । अपने स्वभाव के भाव में जो दशा है; वह वही है, निर्विकल्प है, अबाधित है । व्यतिरेक पर्याय नये-नये रूप धारण करती है, अतः वह विशेष है ।
इसप्रकार ये वस्तु की लक्षशणक्ति के 'सामान्य-विशेष हैं । सभी गणों के सामान्य और विशेष इसमें अन्तर्गभित होते हैं, यहो वस्तु का सर्वस्व है। सज्ञा प्रादि के भेद से इसके बहुत भेद हैं।