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सामान्य विशेषात्मक वस्तु और स्याद्वाद
व सामान्य विशेष का स्वरूप लिखते हैं :सामान्य में विशेष है और विशेष में सामान्य है । कहा भी है :
"निविशेषं हि सामान्यं भवेत् खरविषायवत् । सामान्यरहितत्वाच्च विशेषं तद्वदेव हि ॥ सामान्यार्थ :- वास्तव में विशेष रहित सामान्य और सामान्य रहित विशेष गधे के सींग के समान है ।
'वस्तु' - ऐसा कहना वस्तु का सामान्यकथन है और 'सामान्यविशेषात्मकं वस्तु' - यह वस्तु का विशेषकथन है । 'अस्ति इति सत्' - यह सामान्यसत् का कथन है, और नास्ति इति असत्' अर्थात् पर की अपेक्षा प्रभावरूप सत् - यह विशेषसत् है ।
देखनेमात्र दर्शन है - यह 'सामान्यदर्शन' है और जो स्व-पर सकल ज्ञेय को देखे - वह 'विशेषदर्शन' है । जाननेमात्र ज्ञान है - यह 'सामान्यज्ञान' है और जो स्व-पर