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[ चिदविलास सकेगी और वस्तु अगुरुलघुरूप न हो सकेगी । अतः वस्तु कभी हल्की होने लगेगी और कभी भारी, तब वह जड़ हो जावेगी । अतः उसमें (जीवद्रव्य या वस्तु में) चिद्मवता नहीं रह सकेगी । तथा दूसरा दोष यह है कि पर्याय क्षणवर्ती होकर भो नित्य होने लगेगी, तब अध्र व पर्याय भी ध्रुव होगी।
यदि वस्तु में केवल उत्पाद ही माना जावे तो भी दो दोष लग गे । एक दोष तो यह है कि उत्पाद के कारणरूप व्यय का अभाव हो जावेगा एवं व्यय का अभाव होने से उत्पाद का भी अभाव हो जावेगा। तथा दूसरा दोष यह है कि असत् का भो उत्पाद होने लगेगा, तब आकाश के फूल को भी उत्पत्ति देखी जायगी; परन्तु यह कल्पना झूठी है।
इसीतरह वस्तु में केवल व्यय ही माना जावे तो भी दो दोष होंगे । एक तो यह है कि विनाश (व्यय) जिसका कारण है - ऐसे उत्पाद का भी प्रभाव हो जावेगा, तब उत्पाद का अभाव होने से विनाश भी नहीं हो सकेगा; क्योंकि कारण बिना कार्य नहीं हो सकता । तथा दुसरा दोष यह है कि सत् का उच्छेद (विनाश) हो जायगा । तब सत् का उच्छेद होने से ज्ञान आदि चेतना का भी नाश हो जायगा । अतः यह सिद्ध हुप्रा कि वस्तु विलक्षण ही है।