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[ चिबिकास
होते हैं तो जीवादि को त्रिलक्षणपना (उत्पाद व्यय-ध्रौव्यपना) न बन सकेगा और यदि भेदस्वरूप सिद्ध होते हैं तो सत्ताभेद होने से अनेक सत्ताओं का प्रसंग प्राप्त होगा, तब विपरीतता होगी?
समाधान :- लक्षण की अपेक्षा से तो उत्पाद आदि और जीवादि द्रव्यों में भेद है, परन्तु सत्ता की अपेक्षा भेद नहीं; अतः सत्ता से 'अभेद' और संज्ञा आदि की अपेक्षा 'भेद' समझना चाहिये।
वस्तु की सिद्धि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य - इन तीनों से होती हैं। प्राप्तमीमांसा में भी कहा है : --
घटमौलि सुवर्णार्थो नाशोत्पादस्थितिध्वयम् । शोक-प्रमोद-माध्यस्थं जनो याति सहेतुकम् ॥५६॥ पयोव्रतो न दयत्ति न पयोऽत्ति दधिवतः । अगोरसवतो नोभे तस्मात् तत्त्वं त्रयात्मकम् ।।६०॥
सामान्यार्थ :-- सोने के घट, सोने के मुकुट और केवल' सोने का इच्छुक मनुष्य क्रमशः घट के नाश होने पर शोक को, मुकुट के उत्पाद होने पर हर्ष को तथा दोनों अवस्थाओं में सोने की स्थिति बराबर बनी रहने से माध्यस्थ्यभाव को प्राप्त होते हैं तथा यह सब सहेतुक है। __ जैसे किसी पुरुष ने दूध का व्रत लिया हो कि 'मैं दूध ही पिऊँगा', वह दही का भोजन नहीं करता। जिसनेदही