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कारण-कार्य सम्बन्ध ]
समाधान :-'लक्षण' के बिना 'लक्ष्य', यह नाम प्राप्त नहीं होता - ऐसा तो है; परन्तु परमार्थ से अभेदनिश्चय में - निर्विकल्प वस्तु में द्वैत की कल्पना का विकल्प कैसे संभव हैं ? एक अभेदवस्तु में सब (गुरगों) की सिद्धि है । जैसे चन्द्र और चन्द्रिका (प्रकाश) एक ही हैं। सामान्यरूप से वस्तु निर्विकल्प है, विशेषरूप से जब शिष्य को समझाते हैं, तब ज्यों-ज्यों शिष्य गुरु द्वारा समझाये जाने पर गुरण का स्वरूप जान-जानकर विशेषभेदी (भेदविज्ञानी) होता जाता है, त्यों-त्यों उस शिष्य को प्रानन्द की तरंगें उठती हैं और वह उसीसमय वस्तु का निर्विकल्प प्रास्वाद करता है । इसकारण से गुण-गुणी का विचार करना योग्य है ।
इसप्रकार गुरग का विशेष कथन किया - इस गुण के परिणामरूप उत्पाद-व्यय के द्वारा ही वस्तु की सिद्धि होती है।
कारण-कार्य सम्बन्ध
प्रथम ही सब सिद्धान्तों का मूल यही है कि वस्तु का कारण-कार्य जान लिया जाय । जितने भी जीव संसार से पार हुए हैं, वे सभी परमात्मा का कारण कार्य जानजानकर हो पार हुए हैं ।