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[ चिविलास
कह सकते हैं कि परिणामों को वृत्ति गुण से भी उत्पन्न होती है, क्योंकि द्रव्य और गुण के सत्त्व पृथक्-पृथक नहीं, बल्कि एक हैं ! गुण द्रव्यमय परिगमित होने से गुणमय परिणाम है । इसप्रकार वस्तु का परिणाम निर्विकल्प है। आत्मा ज्ञानरूप परिणमन करता है तो परिणाम जानने रूप होता है, अतः ऐसी विवक्षा जाननी चाहिये कि ज्ञान जाननेरूप परिणमन करता है। __शंका :- 'परिणाम' को वस्तु का सर्वस्व क्यों कहा गया है ?
समाधान :- परिणाम से वस्तु का अन्वय स्वभाव पाया जाता है । यदि न हो तो द्रव्य अन्वयी न हो । अनन्त गुणों के परिणमन बिना द्रव्य नहीं हो सकता । इसलिए वस्तु का सर्वस्वरूप जो परिणाम है, उससे वस्तु का वेदन करना वेदकता है ।
गण के परिणाम से गुरण के अस्वाद का लाभ होता है। द्रव्य के परिणाम से द्रव्य के आस्वाद का लाभ होता है ।
शंका :- पहले जो लक्ष्य और लक्षण का भेद बताया गया है, उसका कारण क्या है ?
१ वह वाक्य मूलमन्थ में इसप्रकार है - 'यात बस्तुवेदक में सर्वस्व
परिणाम सो वेदकता है।'