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पर्याय !
कार्य) षड्गुणी बृद्धि-हानि है, यदि षड्गुणी वृद्धि हानि न हो तो अगुरुलघु गुण भी नहीं होगा । सूक्ष्मगुण की पर्याय न हो तो सूक्ष्मगुण भी नहीं होगा । सूक्ष्मगुण की पर्याय ज्ञानसूक्ष्म और दर्शनसूक्ष्म हैं । अतः 'पर्याय' साधक (साधन) है और 'गण' सिद्धि (साध्य) है ।
शंका :- षड्गुणी बृद्धि हानि का स्वरूप क्या है ?
समाधान :- सिद्ध भगवान को दृष्टान्त बनाकर षड्गुणी वृद्धि-हानि का स्वरूप कहते हैं।
जैसे सिद्ध परमेश्वर अपने शुद्ध सत्तास्वरूप में परिपामन करते हैं - ऐसा कहा है। वहाँ अनन्त गुणों में एक 'सत्तागुण' भी है । इसप्रकार अनन्तगुणों का अनन्तवांभाग सत्तागुण हुमा, उसके परिणमन को वृद्धि 'अनन्तभागवृद्धि' है । भगवान में असंख्य गुण की विवक्षा से जब यह कहा जाता है कि भगवान द्रव्यत्व गुणरूप परिणमन करते हैं, वहाँ द्रव्यत्वगुण असंख्य गुणों में से एक गुण होने के कारण असंख्यातवाँ भाग हुआ, उस परिणमन की वृद्धि 'प्रसंख्यातभागवृद्धि' है । सिद्ध के आठ गुण की विवक्षा से जब यह कहा जाता है कि सिद्ध सम्यक्त्वरूप परिणमन करते हैं, तब आठ गुणों में से एक गण होने के कारण संख्यातवां (पाठवाँ) भाग हुआ, उस परिणमन की वृद्धि 'संख्यातभागवृद्धि' है।
सिद्ध आठों गुणरूप परिणमन करते हैं, तब आठ गुणों