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[ चिविलास
के परिणमन की वृद्धि 'संख्यातगणीवृद्धि' है । सिद्ध असंख्य गुणरूप परिणमन करते हैं, तब असंख्यात गुणों के परिण मन की वृद्धि 'असंख्यातगुणीवृद्धि है। सिद्ध अनन्तगुणरूप परिणमन करते हैं, तब अनन्तगुणों के परिण मन की वृद्धि 'अनन्तगुणीवृद्धि' है।
इसप्रकार जब इस छह प्रकार की वृद्धि के कारण परिणाम वस्तु में लीन हो जाते हैं, तब छह प्रकार की 'हानि' कहलाती है और जब यह वृद्धि-हानि होती है, तभी अगुरुलघु गुण रहता है । इस अगुरुलघु गुण से वस्तु की सिद्धि होती है।
इसलिए 'गुण' की सिद्धि 'गुणपर्याय' से होती है 'द्रव्य' की सिद्धि 'द्रव्यपर्याय' से होती है और 'पर्याय' की सिद्धि 'द्रव्य और गुसरा' से होती है। 'द्रव्यपर्याय' की सिद्धि 'द्रव्य' से होतो हैं और 'गुणपर्याय' की सिद्धि गुण से होती है । द्रव्य से ही पर्याय उत्पन्न होती है, द्रव्य न हो तो परिणाम उत्पन्न न हो, क्योंकि द्रव्य परिणमन किये बिना द्रव्यरूप कसे हो सकता है ? अतः द्रव्य से 'पर्याय' को सिद्धि होती है।
ज्ञान गुण न हो तो जानपने रूप परिणमन कैसे हो सकता है ? गुण के द्वार से परिणति होती है । जैसे द्वार न हो तो द्वार में प्रवेश कैसे हो सकता है ? इसीप्रकार यदि 'गुण' न हो तो 'गुणपरिणमन' भी नहीं हो सकता । सूक्ष्मगुण न हो तो सूक्ष्मगुण की पर्याय कहां से हो सकती