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चारित्रगुण ] के सत्त्व जानो। उन अनंत सत्त्वों का आचरण, विश्राम और स्थिरताभाव चारित्र ने किया । __ शंका :- ज्ञान का 'चारित्र' (पाचरण) एकदेश है या सर्वदेश ?
समाधान :- ज्ञान एक गुण है, परन्तु ज्ञान में समस्त गुण जाने जाते हैं । ज्ञान में सर्वज्ञ-ज्ञानशक्ति है, अतः ज्ञान के आचरण से सबका आचरण है । ज्ञान के वेदन में सभी गुणों का वेदन होता है, यह 'ज्ञान विश्राम' हुमा । ज्ञान की स्थिरता होने पर सब गणों की स्थिरता ज्ञान की स्थिरता में समाविष्ट हो जातो है, अतः ज्ञान का चारित्र सर्वदेश सिद्ध हुग्रा ।
इसोप्रकार दर्शन का चारित्र और ऐसे ही समस्त गुणों के चारित्र समझना चाहिए ।
हूँ चैतन हूँ ज्ञान हूँ दर्शन सुख भोगता । हूँ परहन्त सिद्ध महान् हूँ हूँही हूँ को पोषसा ॥
मैं चेतन हूँ, मैं ज्ञान हूँ, मैं दर्शन हूँ, मैं सुख का भोक्ता हूँ। मैं प्रहन्त - सिद्ध महान हूँ, मैं ही मैं का पोषक हूँ।
पण्डित दोपधन्द शाह : प्रात्मावलोकन, पृष्ठ १५२