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[पिदविलास
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में द्रवत्वशक्ति है, अतः वह द्रव्य को द्रवित करता है। द्रव्य में द्रव्यत्वशक्ति के कारण वह गुण-पर्याय को द्रवित करता है । गुण में द्रवत्वशक्ति है, जिससे वह द्रव्य-पर्याय को द्रवित करता है । यह द्रव्यत्वशक्ति द्रव्य-गुण-पर्याय तीनों में है ।
जब परिणाम गण में द्रवित होकर व्याप्त होता है, तब गुण के द्वारा परिणति होती है, तब गुण के अपने लक्षण का प्रकाश होता है । जब द्रव्यरूप परिणति हुई, तब द्रव्यलक्षण प्रगट हुआ। अतः परिणामों के बिना द्रवता नहीं और द्रवित हुए बिना व्यापकता नहीं, इसलिए व्यापकता के बिना द्रव्य का प्रवेश गण-पर्यायों में नहीं होता; अतः अन्योन्य सिद्धि भी नहीं हो सकेगी। अन्योन्य सिद्धि के निमित्त (कारण) होने से परिणाम हो सर्वस्व हैं, क्योंकि प्रात्मा में ज्ञान-दर्शन की स्थिति परिणाम के कारण होती है। अतः परिणाम हो चारित्र है।।
विश्रामस्वरूप में जो वेदकता होती है, वह विश्रामरूप चारित्र' है । गुण वस्तु को प्राचरण (परिणमन) करके प्रगट करता है, अतः वह 'पाचरणरूप चारित्र' है । चारित्र द्रव्य का सर्वस्वगुण है । ___ सत्ता के अनन्त भेद हैं, अनन्त गुणों के अनन्त सत्त्व हुए । जैसे ज्ञानसत्त्व, दर्शनसत्त्व । इसप्रकार अनन्त गुणों