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नमल
३८ ]
[घि विश्वास
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दो हो गुण सिद्ध भगवान के प्रगट होते हैं । इस कथन में कोई सन्देह नहीं । तथा अात्मा का अवलोकन हो दर्शन यदि कहा आवे तो सर्वदर्शित्व शक्ति का प्रभाव हो जावेगा। "विश्वविश्वसामान्यभावपरिगतात्मदर्शनमयी सर्वशित्वशक्तिः"
सामान्यार्थ : - समस्त विश्व के सामान्यभाव को देखनेरूप से परिणमित -ऐसे आत्मदर्शनमयी सर्वशित्वसक्ति है।"
ऐसा सिद्धांत का वचन समयसार शास्त्र की आत्मख्याति टोका में ४७ शक्तियों के वर्णन में सर्वशित्व शक्ति के विषय में आया है।
शंका :-- दर्शन को निराकार तो कहा है, लेकिन सर्वदशित्व शक्ति से समस्त ज्ञेयों को देखने से वह निराकार नहीं रहा।
समाधान :- गोम्मटसार शास्त्र में कहा है :"भावारणं सामण्णविसेसयारणं सरूयमेत जं । वण्णराहीसगहरणं जीवेग य सणं होदि ॥४८३॥
सामान्यविशेषात्मकपदार्थानां यत् स्वरूपमा विकल्परहितं यथा भवति तथा जीवेन सह स्वपरावभासनं दर्शन भवति । दृश्यन्ते अनेन दर्शनमात्रं वा दर्शनम् ।"
सामान्य विशेषमय समस्त पदार्थों का स्वरूपमात्र विकल्परहित जीवसहित स्व-पर के प्रवभासन को दर्शन कहा गया है।
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