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दर्शनगुण ]
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अनन्त गुरणों में भी सातों भेद घटित किए जा सकते हैं । यहां सिर्फ ज्ञान के ही भेद संक्षेप से कहे गए हैं ।
दर्शनगुण
जो देखता है, वह 'दर्शन' है अथवा जिसके द्वारा जीव देखता है, वह 'दर्शन' है । दर्शनशक्ति निराकार उपयोगस्वरूप है । 'निराकारं दर्शनं साकारं ज्ञानम्' - ऐसा कथन जिनागम में श्राया है ।
यदि दर्शन न हो तो वस्तु अदृश्य हो जावेगी और तब किसी भी वस्तु का ज्ञान नहीं होगा, तब ज्ञेय का प्रभाव हो जायेगा, प्रतः दर्शनगुण प्रधान गुरण है । 'सामान्यं दर्शनं विशेषं ज्ञानम्' - ऐसा भी कथन हैं ।
कुछ वक्ताओं (वादियों) ने सिद्धस्तोत्र की टोका की है, उन्होंने तथा कुछ अन्य वक्ताओं ने यह कहा है कि 'सामान्य' शब्द का अर्थ 'आत्मा' है। आत्मा का अवलोकन करे, वह दर्शन है और स्वपर का अवलोकन करे, वह ज्ञान है - ऐसा कहने से एक हो गुण स्थापित होता है, क्योंकि जिस दर्शन ने श्रात्मा का अवलोकन किया, उसी दर्शन ने पर का अवलोकन किया। इसप्रकार यदि एक ही गुण सिद्ध होगा तो दो प्रावरण सिद्ध नहीं हो सकेंगे । ज्ञानावरण और दर्शनावरण- इन दो आवरणों के क्षय होने से