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[ निद्विलास
Arun
शंका :-- प्रात्मा को उसके भविष्य काल के प्रत्येक समय में परिणामों द्वारा जो सुख होना है, वह तो ज्ञान में आकर पहले ही प्रतिभासित हो जाता है, परन्तु नवीननवीन, समय-समय का जो स्वसंवेदन परिणति का सुख कहा गया है, वह कैसा है ?
समाधान :- ज्ञानभाव में प्रतिभासित जो भविष्यकाल में होनेवाले परिणाम हैं, वे जब व्यक्त होंगे तब सुखरूप होंगे । यहाँ परिणाम व्यक्त हुअा, उससे सुख है। चूंकि परिणाम एक समय तक ही रहते हैं, अतः उनसे होनेवाला सुख भी समयमात्र का होता है। ज्ञान का सुख युगपत् होता है और परिणामों का सुख समयमात्र का है अर्थात् समय-समय के परिणाम जब आते है, तब सुख व्यक्त होता है । भविष्यकाल के परिणाम ज्ञान में आए, परन्तु व्यक्त हुए नहीं, अतः परिणाम का सुख क्रमवर्ती है और वह तो प्रत्येक समय में नवीन-नवीन होता है । ज्ञानोपयोग यगपत है, वह उपयोग अपने-अपने लक्षणसहित है । अतः परिणाम का सुख नवीन है और ज्ञान का सुख युगपत् है ।
ज्ञान को शक्ति अन्वय और युगपत है, उस पर्याय की व्यतिरेकशक्ति (व्यक्तता) व्यापकरूप होकर अन्वयरूप हो जाती है । ज्ञान की शक्ति अन्वय और युगपत् है, लेकिन जिस समय वह परिणामद्वार में आती है, उससमय उसे 'परिणमित हुआ ज्ञान' कहते हैं । अथवा जब ज्ञान ज्ञान