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ज्ञान के सात भेद ]
शंका :- दर्शन निराकार है. उसके जानने से ज्ञान भी निराकार होगा?
समाधान :- दर्शन गुण का देखनामात्र लक्षण है और वह सर्वशित्व शक्ति सहित है - यही दर्शन की विशेषता है, जिसे ज्ञान जानता है।
दूसरी विशेषता यह है कि ज्ञान की सबंज्ञत्व शक्ति से सबको जानने में दर्शन भी आ जाता है । यहाँ बहुत से गुणों का जानपना मुख्य हुआ, जिनके अन्तर्गत दर्शन भी श्रा जाता है, परन्तु ज्ञान उसरूप नहीं हो जाता । युगपत् जानने की शक्ति ज्ञान की है, अतः उसे जुदा विशेषण समझना चाहिये ।
जैसे किसी पुरुष ने ऐसा रस चखा, जिसमें पांच रस मिले हुए हैं। तब यह नहीं कहा जा सकता कि उस पुरुष ने मधुर रस चखा है, वैसे ही यह समझना चाहिये कि 'दर्शन' अनन्त गुणों के अन्तर्गत प्रा जाता है। अकेले 'दर्शन' की कल्पना नहीं की जा सकती – ऐसा जानना चाहिये ।
ज्ञान अपनी सत्ता की अपेक्षा सत्तारूप है, अपने सूक्ष्मत्व की अपेक्षा सूक्ष्मरूप है, अपने वीर्य की अपेक्षा अनन्त बलरूप है, अपने प्रगुरुलघुत्व की अपेक्षा प्रगुरुलघुरूप है। इसीप्रकार अनन्त गुणों के लक्षण ज्ञान में घटित होते हैं। ज्ञान त्रिकालवर्ती सर्व को एक समय में युगपत् (एक साथ) जानता है !