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[ चिदविलास
पर्यायमात्र के कथन से ज्ञान 'अनेक' है और
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( २ ) वस्तुमा 'एक' है ।
( ३ ) पर्यायमात्र की अपेक्षा से ज्ञान 'नास्तिरूप' है, और वस्तुमात्र 'अस्तिरूप' है ।
( ४ ) ज्ञान पर्यायमात्र की अपेक्षा से 'अनित्य' है और वस्तुमात्र 'नित्य' है ।
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ऐसा समाधान करना 'स्याद्वाद' है, वस्तु का स्वरुप ऐसा ही है ।
ज्ञानवस्तु अपने अस्तित्व की प्रपेक्षा चार भेद सहित है । ज्ञानमात्र जीव स्वद्रव्य की अपेक्षा अस्तिरूप है, स्वक्षेत्र की अपेक्षा अस्तिरूप है, स्वकाल की अपेक्षा अस्तिरूप है और स्वभाव की अपेक्षा अस्तिरूप है। इसी प्रकार वह परद्रव्य की अपेक्षा नास्तिरूप है, परक्षेत्र की अपेक्षा नास्तिरूप है, परकाल की अपेक्षा नास्तिरूप है और परभाव की अपेक्षा नास्तिरूप है। ज्ञान के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, ज्ञेय में नहीं और ज्ञेय के ज्ञान में नहीं ।
अपने निजलक्षण की अपेक्षा से एवं अन्य गुण लक्षण की निरपेक्षता से ज्ञान की संज्ञा, संख्या, लक्षरण और प्रयोजनता ज्ञान में है; अन्य ( गुण ) में नहीं है तथा अन्य गुरप की संज्ञा, संख्या, लक्षण और प्रयोजनता अन्य गुरण में है, ज्ञान में नहीं है ।