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शान के सात भेद ]
[ ३१ ज्ञान के सात भेद
उस ज्ञान के विशेष भेद लिखे जा रहे हैं, क्योंकि विशेषज्ञान से विशेषसुख प्राप्त होता है। ज्ञान और आनन्द की समीपता है, इसीलिए ज्ञान के सात भेद कहे जा रहे हैं । बे भेद इसप्रकार हैं :
(१) नाम (२) लक्षण (३) क्षेत्र (४) काल (५) संख्या (६) स्थानस्वरूप तथा (७) फल ।
(१) नाम :- ज्ञान का नाम ज्ञान क्यों है ? 'जानातीति ज्ञानम्, ज्ञायते अनेन वा इति ज्ञानम् ।'
जो जानता है, वह ज्ञान है अथवा जिसके द्वारा जाना जावे, वह ज्ञान है, इसीलिए ज्ञान का नाम 'ज्ञान' है । ज्ञान द्वारा जीव जानता है।
लक्षण :- ज्ञान का लक्षण सामान्य की अपेक्षा से निर्विकल्प है । वही स्व-परप्रकाशक है। विशेष कथन इस प्रकार है कि यदि ज्ञान को केवल स्वसंवेदक ही माना जावे, तो महादूषण हो जावेगा। स्वपद की स्थापना पर को स्थापना से ही होती है, पर की स्थापना की अपेक्षा निषेध कर देने पर स्व की स्थापना भी सिद्ध नहीं हो सकती । अतः ज्ञान की स्व-परप्रकाशक शक्ति मानने से सब सिद्धि होती है । इसमें धोखा या सन्देह नहीं है।
शंका :- ज्ञान अनन्त मुरगों को जानता है, अत: एक 'दर्शन' को भी जानता है । अतएव दर्शनमात्र को