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शान गुण ]
जिसप्रकार दर्पण में घट-पट दिखाई दें तो दर्पण निर्मल है, और न दिखाई दें तो वह मलिन है। उसीप्रकार जिस ज्ञान में सकल ज्ञेय प्रतिभासित होते हैं, वह निर्मल है
और जिसमें प्रतिभासित नहीं होते, वह मलिन है । सान अपने द्रव्यप्रदेशों की अपेक्षा ज्ञेय में प्रवेश नहीं करता, तन्मय नहीं होता | यदि तन्मय हो तो ज्ञेय का आकार नष्ट होने पर ज्ञान भी नष्ट हो जाये ? अतः द्रव्य की अपेक्षा ज्ञेयव्यापकता नहीं है । ज्ञान की एक 'स्व-परप्रकाशक' नामक ऐसी शक्ति है कि उस शक्ति को पर्याय द्वारा वह ज्ञेय को जानता है ।
शंका :- ज्ञानमात्र आत्मवस्तु का स्वरूप है – इसके सम्बन्ध में चार प्रश्न उत्पन्न होते हैं । प्रथम प्रश्न यह है कि ज्ञान ज्ञेय के आश्रित है या अपने आश्रित ? द्वितीय प्रश्न यह है कि ज्ञान एक है या अनेक ? तृतीय प्रश्न यह है कि ज्ञान अस्तिरूप है या नास्तिरूप ? चतुर्थ प्रश्न यह है कि ज्ञान नित्य है या अनित्य ?
समाधान :- (१) जितनी भी वस्तुएं हैं, वे सभी द्रव्य-पर्यायरूप हैं। अतः ज्ञान भी द्रव्यपर्यायरूप है । द्रव्यरूप निर्विकल्प ज्ञानमात्र बस्तु है, तथा पर्याय मात्र स्वज्ञेय तथा परज्ञेय को जानती है । ज्ञान की पर्याय ज्ञेय की पर्याय के आकारवाली होने से ज्ञान ज्ञेय के प्राकारवाला है तथा वस्तुमात्र अपने आकारवालो है।