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[चिविलास निश्चय का नाम सम्यक्त्व है, उसमें व्यवहार, भेद या विकल्प नहीं, अशुद्धता भी नहीं । सम्यक्त्व तो निजअनुभवस्वरूप है । ज्ञान का जो जाननेमात्र परिणमन हुआ, वह सम्यक्त्व निर्विकल्प ज्ञान १ (निर्विकल्प सम्यग्ज्ञान) है, तथा 'ज्ञान ज्ञेय को जानता है' - ऐसा कथन असद्भूत उपचरित नब (उपचरित-असद्भूतव्यबहारनय) के द्वारा होता है।
जो दर्शन देखनेमात्र परिगमा, उसे निविकल्प सम्यग्दर्शन कहते हैं । स्वज्ञय को पृथक् देखता है और परज्ञ य को पृथक देखता है-ऐसा कथन भेद व्यवहार द्वारा किया जाता है । दर्शन असद्भूत-उपचरितनय (उपचरितअसद्भूतव्यवहारनय) के द्वारा पर को देखता है ।।
अतः ज्ञान और दर्शन निविकल्परूप सम्यक् हुये और यह सम्यक्पना उनमें सम्यक्त्वगुण के द्वारा ही है । इसीप्रकार अनन्त गुणों में जो सम्यक्पना हुआ, वह सम्यक्त्वगुण की प्रधानता से ही हुमा है।
यद्यपि अनादि से यह जीव शुद्धद्रव्याथिकनय से केवलज्ञान प्रादि अनन्त गुणों को धारण किये हुये है। तथापि जबतक सम्यक्त्व प्रकट नहीं होता, तबतक अशुद्ध रहता है । काललब्धि को प्राप्त करके जब सम्यक्त्व प्रकट हुमा, तब सम्यक्त्व की शुद्धता से वे सभी गुण विमल (शुद्ध) हुए | अतः सर्वप्रथम सम्यक्त्वगुग निर्मल हुमा, पश्चात् अन्य गुण निर्मल हुए।
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