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[ २५
सम्यक्त्वगुण ]
___ जो देखनेमात्र परिणमन है, उसे निर्विकल्प सम्यग्दर्शन कहते हैं। तथा जो स्वज्ञेय के भेदों को पृथकपृथक् और परज्ञेय के भेदों को पृथक-पृथक् देखता है, उसे सविकल्प सम्यग्दर्शन कहते हैं।
जो जाननेमात्र परिणमन है, उसे निर्विकल्प सम्यग्ज्ञान कहते हैं, तथा जो स्वज्ञेय भेदों को पृथक्-पृथक और परज्ञेय भेदों को पृथक-पृथक् जानता है, उसे सविकरूप सम्यग्ज्ञान कहते है।
जो प्राचरणमात्र परिणमन है, उसे निर्विकल्प सम्यकचरित्र कहते हैं और जो स्वज्ञ य का प्राचरण और परज्ञ य के त्याग का प्राचरण है, उसे सविकल्प सम्यक्चारित्र कहते हैं ।
इसप्रकार सम्यक्त्व के बहुत भेद हैं ।।
शंका :- सम्यक्त्व उपयोग है या नहीं ? यदि उपयोग है तो उसके जो बारह भेद किये गये हैं-पाठ ज्ञान के और चार दर्शन के, उनमें सम्यक्त्व को भी सम्मिलित क्यों नहीं किया गया ? और यदि वह उपयोग नहीं है तो उसमें प्रधान (प्रधानता) कैसे सम्भव होगी ?
समाधान :-- यह सम्यक्त्वगुण है, वह प्रधानगुण है, क्योंकि सभी गुरगों में सम्यक्पना इसी गुरण के कारण है । सभी गुणों का अस्तित्व इसी गुण के कारण है; क्योंकि सभी गुणों का निश्चय यथावस्थितभाव के द्वारा है ।