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[ चिद्विलास
जावे, तो उससे भी सत्तागुरग की भांति अनन्तबार सप्तभङ्ग सिद्ध होंगे। इसीप्रकार वस्तुत्वगुण की तरह एक-एक गुण के साथ अनन्तबार पृथक्-पृथक् सप्तभङ्ग सिद्ध करने चाहिये और इसोप्रकार अनन्तगुरग को सप्तभङ्गी सिद्ध को जाती है ।
जब सत्ता के स्थान पर अन्य गुणों को रखेंगे, तब केवल एक चेतना की विवक्षा से अनन्त भङ्ग सिद्ध होंगे, और जब ऐसे ही चेतना की भाँति एक-एक गुण को विवक्षा करके भङ्ग सिद्ध करेंगे, तब सब गुण पर्यन्त अनन्तानन्त भङ्ग एक-एक गुण के साथ सिद्ध होंगे ।
अतः यह चर्चा स्वरूप की रुचि प्रकट होने पर ही होती है और की जाती है । निज घर का निधान निजपारखी हो परखता है ।
सम्यक्त्वगुरण
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जीव में अनन्त गुण हैं, उनमें सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, चरित्र और सुख ये विशेषरूप हैं, प्रधान हैं । सम्यक्त्व का अर्थ है - वस्तु का यथावत् निश्चय होना, उसके अनन्त प्रकार हैं ।
१. यहाँ सम्यक्त्व के दर्शन अपेक्षा दो भेद, ज्ञान अपेक्षा दो भेद और चारित्र अपेक्षा दो भेद - इसप्रकार छह भेद समझाये हैं और इसीप्रकार अनन्त गुणों की अपेक्षा से सम्यक्त्व के प्रनन्स भेद होते हैं, अतः यहाँ सम्प्रक्व को अनत प्रकार का कहा है ऐसा समझना ।
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