________________
-
-
--
२२ ]
[ चिदविलास गुण को 'सूक्ष्म ज्ञान पर्याय' ज्ञायकतारूप अनन्तशक्तिमय नृत्य करतो है । एक ज्ञान के नृत्य में अनन्त गुणों का घाट जानने में आया है, अतः वह ज्ञान में है। अनन्त गुणों के घाट में एक-एक गुण अनन्तरूप होकर भी अपने-अपने लक्षण सहित है--यह कला है और प्रत्येक कला गुणरूप होने से अनन्तरूप को धारण करती है । प्रत्येक रूप जिनजिन रूप में होता है, उनको अनन्त सत्ताएँ हैं और प्रत्येक सत्ता अनन्त रस और एक-एक रस में अनन्त प्रभाव हैं।
इसप्रकार अनंतपर्यन्त ऐसे ही भेद समझना चाहिये ।
एक-एक गुण के साथ दूसरे गुणों को जोड़ने पर 'अनंत सप्तभङ्ग' सिद्ध होते हैं, इसका कथन करते हैं :
सत्तागुण ज्ञानगुण रूप है या नहीं ? यदि सत्तागरण को ज्ञानगणरूप माना जावे तो द्रव्याश्रया निगुणा गणाः " - इस सूत्र में जो एक गुरण में दूसरे गुण के रहने का निषेध किया गया है, वह असत्य हो जावेगा । और यदि सत्तागमा को जान गणरूप म माना जावे, तो वह जड़ हो जाये । अतः सप्तभङ्ग सिद्ध किये जाते हैं ।
(१) केवल चैतन्य का अस्तित्व है; जब ऐसा कथन किया जाता है, तब सनागुरण 'ज्ञानरूप' है।
(२) जब सत्ता को केवल सत्ताल क्षण से सापेक्ष और अन्य गुण निरपेक्ष लिया जाय, तब सत्तागुण 'ज्ञानरूप नहीं है।