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गुरण ]
[ २१ और शेष गौग हैं । अत: मुख्यता-गौणताभेद को विधिनिषेध भेद? समझना चाहिय ।
सामान्य और विशेष की विवक्षा से सभी की सिद्धि होती है । नय-विवक्षा और प्रमाण-विवक्षा का नाम युक्ति है। युक्ति प्रधान है. क्योंकि युक्ति से वस्तु की सिद्धि होती है । यही बात नयचक्र में कही गई है :-..
"तच्चारगोसएकाले समयं बुझेहि जुत्सिमग्गेण ।
रणो प्रारा हरणसमये १च्चक्खो प्ररण हवो जमा ॥२
सामान्यार्थ :- तत्त्व के अन्वेषण के काल में समय अर्थात् शुद्धात्मा को युक्तिमार्ग से अर्थात् नय-प्रमाण द्वारा प्रथम जानना चाहिये, किन्तु आराधना के समय में युक्ति की आवश्यकता नहीं होती; क्योंकि यहाँ तो शुद्धात्मा का प्रत्यक्ष अनुभव है।"
अतः नय और प्रमारण का नाम युक्ति है - ऐसा समझना चाहिए । __ गणसत्ता में अनन्त भेद है, अतः गुरण के भी अनन्त भेद हैं । एक सूक्ष्मगुण की अनन्त पर्यायें होती हैं । ज्ञान सूक्ष्म है, दर्शन सूक्ष्म है और इसीप्रकार सभी गुणों को ऐसे ही सूक्ष्म जानना । सूक्ष्म की पर्यायें भी सूक्ष्म हैं । सूक्ष्म
५., जिस धर्म की मस्यता की जाय, उसकी विधि एवं जिन धर्मों की गोगता
की आव, उनका निषेध (गौणरूप से) समझना चाहिये । २. द्रव्यस्वभावप्रकाशकन यचक गाथा, २६ ३. 'प्रमाशानयात्मको युक्ति :'- ऐसा प्रास्त्र कावचन है।