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गुरग 'द्रव्यं द्रव्यात गुण्यन्ते, ते गुणा उच्चन्ते ।' अर्थात् जो द्रव्य को दूसरे द्रव्यों से पृथक बताते हैं, उन्हें गरण कहते हैं । गुरणों के द्वारा द्रव्यों की पथकता का ज्ञान होता है 1 जैसे चेतनागुण के द्वारा जीव जाने जाते हैं।
अस्तित्वगुरण एक ऐसा गुण है, जो साधारण गुण होने से सब में पाया जाता है। महासत्ता की विवक्षा से अवान्तर सत्ताय होती हैं, परन्तु वे सब अपने-अपने अस्तित्व सहित है।
इनमें एक स्वरूपसता भी है, जिसके तीन प्रकार हैं:द्रव्यसत्ता, गुणसत्ता और पर्यायसत्ता ।
इनमें से 'द्रव्य है --- यह द्रव्यसत्ता कहलाती है। द्रव्य का कथन पहले किया जा चुका है।
'गुण है'-- यह गुणसत्ता कहलाती है। गुण अनन्त हैं और सामान्यविवक्षा से अनन्त ही प्रथान हैं। विशेषविवक्षा से जिस गुण को प्रधानता दी जावे, वह मुख्य है।