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[विधिसास और दर्शन का भाव ज्ञान से नहीं मिलता; इसीप्रकार : अनन्तगुण हैं, फिर भी कोई गुरण किसी दूसरे गुरण से नहीं मिलता । सभी गुणों का एकान्तभाव (एकरूपभाव, तादात्म्यभाव) चेतना का पुञ्ज द्रव्य है।
यदि गुणी के बिना गुण मात्र को माना जावे तो माकास के भी फूल होने लगेंगे । गुरपी के बिना गुण कैसे हो सकते हैं ? अर्थात् नहीं हो सकते ।
ज्ञान को एक गुण माना गया है, लेकिन यदि द्रव्य के बिना ज्ञान को ही बस्तु मान लिया जावे, तब तो ज्ञान वस्तु कहलाने लगेगा और इसप्रकार अनन्त गुरण अनन्त वस्तुएं कहलाने लगेंगी, जो सिद्धान्त के विपरीत होगा; क्योंकि ऐसा है नहीं । सभी गुणों की आधारभूत जो एक वस्तु है, उसी को द्रव्य कहते हैं ।।
शंका :- यह द्रव्य वस्तु है या वस्तु की अवस्था है ?
समाधान :- सामान्य और विशेष का जो एकरूपभाव (तादात्म्यभाव) है, वही वस्तु का स्वरूप है। द्रवीभूत गुण के कारण ही द्रव्य को 'द्रव्य' नाम मिलता हैं, अतः वस्तु की अवस्था द्रव्यत्व के द्वारा द्रव्य रूप हुई है। अतः वह वस्तु ही है। विशेषण के कारण ही विशेष संज्ञा होती है । स्याद्वाद में विरोध नहीं होता । वस्तु की सिद्धि ... नयसापेक्ष है।
कहा भी है :