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[ मिविलास द्रव्यार्थिव नय की अपेक्षा से द्रव्य विशेषग है, उसके अनेक भेद हैं :- अभेद द्रव्याथिकनय द्रव्य को अपने स्वभाव से अभेदरूप दिलाता है। भेदकल्पना को अपेक्षा से अशुद्ध द्रव्याथिकनय द्रव्य को भेदरूप दिखाता है । शुद्ध द्रव्यापिक.नय द्रव्य को शुद्ध दिखाता है । अन्वय द्रव्याथिकमम द्रव्य को गगणादिस्वभावरूप प्रदर्शित करता है । सत्तासापेक्ष द्रव्य सत्तारूप कहलाता है। अनन्तज्ञानसापेक्ष द्रव्य ज्ञानरूप कहलाता है। दर्शनसापेक्ष द्रव्य दर्शनरूप कहलाता है। अनन्तगुगासापेक्ष द्रव्य अनन्तगुणरूप कहलाता है । इसीप्रकार द्रव्य के और भी अनेक विशेषण हैं, जिन्हें द्रव्य में नय और प्रमाण के द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।
शंका :-हे प्रभो ! यदि गुरण-पर्याय का पूज द्रव्य है तो गुण के लक्षण द्वारा गुण को जाना और पर्याय के लक्षण द्वारा पर्याय को जाना, फिर द्रव्य तो कोई वस्तु नहीं रही। इसप्रकार गया और पर्याय ही कहे गये । जिस प्रकार आकाशकुसुम कथनमात्र है, उसीप्रकार द्रव्य का स्वरूप भी कथनमात्र हुआ । इस द्रव्य का स्वरूप तो गुरण' और पर्याय ही हैं, और कुछ नहीं; अतः गुण और पर्याय ही हैं, द्रव्य नहीं ?
समाधान :- जो स्वभाव है, वह स्वभाववान से उत्पन्न है । यदि स्वभाववान न हो तो स्वभाव भी नहीं हो सकता। जिसप्रकार अग्नि न हो तो उष्णस्वभाव भी नहीं