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द्रव्य ]
[१२ 'गुणसमुदाय' के कहने में अगुरुलघुत्वगुण पाया और अगुरुलघुत्वगुण के कथन से षड्गुरगो वृद्धि-हानि नामक पर्याय पाई; अतः गुणसमुदाय से पर्याय की सिद्धि होती है । द्रव्यत्वगुण भी गुणों के अन्तर्गत आता है, अतः 'गुणसमुदायो द्रव्यम्' यह लक्षण भी विवक्षा से प्रमाण है । ___'गुणपर्ययवद् द्रव्यम्'- इस लक्षण में सत्ता, सर्व गुण और पर्यायें आ जाती हैं ; अतः द्रव्य को गुणपर्यायवान् कहना भी विचक्षा से प्रमाण है। ___ 'द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यम्'- यह लक्षण भी प्रमाण है, क्योंकि गुणपर्यायों के द्रवित हुए बिना द्रव्य नहीं हो सकता; अतः द्रवणा द्रव्यत्वगुण से है । द्रव्य द्रवित होने से गुणपर्याय को व्याप्त करके प्रकट करता है, अतः गुरण-पर्याय का प्रकट होना द्रव्यत्वगुण से है; अतः द्रव्यत्व को विवक्षा से "द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यम्'- यह लक्षण भी प्रमाण है।
'स्वतःसिद्ध द्रव्यम्'- यह लक्षण भी प्रमाण है, क्योंकि ये चारों द्रव्य के स्वत: स्वभाव हैं। द्रव्य अपने स्वभावरूप स्वतः परिगमन करता है, अतः उसे स्वतःसिद्ध कहा जाता है।
द्रव्य गुरण-पर्यायों को द्रवित करता है तथा गुण-पर्याय, द्रव्य को द्रवित्त करते हैं, तभी द्रव्य को 'द्रव्य' नाम मिलता है।