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काम
द्रव्य प्रथम ही वस्तु में द्रव्य, गुण और पर्याय का निर्णय किया जाता है; उस में द्रव्य का स्वरूप 'द्रव्यं सत् लक्षणम्'- ऐसा जिनागम में कहा गया है ।
शंका :- हे प्रभो ! 'गुणसमुदायो प्रध्यम्' - ऐसा श्री जिनेन्द्रदेव का वचन है, जिसके अनुसार एक सत्तामात्र में अनन्तगुणों की सिद्धि नहीं होती । 'गुरणपर्ययबद् द्रव्यम्' - ऐसा गुणसमुदाय के कहने से सिद्ध नहीं होता। 'द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यम्' -- यह भी द्रव्य का विशेषण करें, तब भी कहते हैं कि यदि द्रब्य स्वतःसिद्ध है तो ये विशेषण झूठे हुए; क्योंकि द्रव्य इनके आधीन नहीं है ।
समाधान :- हे शिष्य ! वस्तु से मुख्य-गौण को विवक्षा करें, तब सत्ता की मुख्यता करके द्रव्य को सत्तालक्षण कहा जायगा; क्योंकि सत्ता का लक्षण 'है' अर्थात् 'होना है। अतः 'है' लक्षण में गुणसमुदाय, गुण-पर्याय भौर द्रव्यत्व -- ये सब अन्तर्गभित हो जाते हैं; अतः द्रव्य को सत्तालक्षण कहा जाता है। इसप्रकार कहे जाने में कोई दोष नहीं, बिरोध भी नहीं ।
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