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चिद्विलास
अनन्त शक्तियाँ नामक पंचम अध्याय में गृहीत किया है । इसीप्रकार अन्यत्र समझना चाहिये ।
ग्रन्थकार ने कतिपय स्थानों पर अन्य ग्रन्थों के उद्धरण भी दिये हैं, जो संस्कृत भाषा में होने से संस्कृत में श्रनभिज्ञ समाज को सरलता से समझ में नहीं ला पाते; प्रतः उनका सामान्यार्थ भी साथ-साथ दे दिया गया है ।
प्रत्येक प्रध्याय के अन्त में बचे हुए स्थान में ग्रन्थकार के अन्य ग्रन्थों के कुछ उद्धरण दिए गये हैं। जैसे :- पृष्ठ १६ पर अनुभवप्रकाश का; पृष्ठ ४३, ५६ एवं १९४७ पर श्रात्मावलोकन के; पृष्ठ ७० पर उपदेश सिद्धान्त रत्न का तथा पृष्ठ ११६ पर ज्ञानदर्पण का उद्धरण दिया गया है।
इसप्रकार हम देखते हैं कि पण्डित दीपचन्दजी साहब ने बड़ी ही अधिकारपूर्व शैली में वर्णन किया है। श्रात्मा के गुणों, श्रात्मा की शक्तियों, आत्मा की महिमा आदि के संबंध में प्रगट होनेवाले उनके हृदयोद्गार इस बात के द्योतक है कि वे एक आत्मानुभवी सगृहस्थ थे ।
यह ग्रन्थ प्रत्येक स्वाध्यायप्रेमी को अवश्य पढ़ना चाहिये । इतना ही नहीं, बल्कि गाँव-गाँव में चलनेवाली दनिक शास्त्र सभायों में भी इसका स्वाध्याय होना चाहिये ।
सभी जीव इस लघु ग्रन्थ के माध्यम से अपने आत्मकल्याण का पथ अग्रसर करें - यही भावना है ।
- राकेश कुमार जैन शास्त्री, जैनदर्शनाचार्य, एम ए.
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