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समाधि-वर्णन का स्वरूप ]
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१२. धर्ममेघ और १३. प्रसंप्रज्ञात । अन्तिम असंप्रज्ञात के दो भेद हैं :- १. प्रकृतिलय और २. पुरुषलय ।
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(१) लय समाधि :- लय अर्थात् परिणामों की लीनता निजवस्तु में परिणाम प्रवर्तन करे । राग-द्वेष-मोह मिटाकर दर्शन-ज्ञानमय अपने स्वरूप को प्रतीति में अनुभव करे। जसे शरीर में आत्मबुद्धि थी, वैसे ही प्रात्मा में आत्मबुद्धि धारण करे । तथा जब तक बुद्धि स्वरूप में से बाहर न निकले, तब तक निज में लीन रहे, इसको समाधि कहते है।
लय के तीन भेद हैं :- १. शब्द, २. अर्थ और ३. ज्ञान । 'लय' शब्द हुमा, निज में परिणाम लीन होना -- यह उसका अर्थ हुआ, शब्द और अर्थ का जानपना - यह ज्ञान हुआ । तीनों भेद लय समाधि के हैं। शब्दागम से अर्थागम, अर्थागम से ज्ञानागम - ऐसा श्री जिनागम में कहा है।
शंका :- लय समाधि के भेदों में शब्द क्यों कहा ?
समाधान :- शुक्लध्यान के भेदों में शब्द से शब्दान्तर कहा गया है - इसी रीति से यहां जानना चाहिये । यहाँ द्रव्य-गुण-पर्याय के विचार से परिणाम वस्तु में लीन हो जाते है । ज्ञान में परिणाम आया, उसी में लीन हुआ; दर्शन में आया, उसी में लीन हुना। इसीप्रकार निज में विश्राम, आचरण, स्थिरता और ज्ञायकता द्वारा लय समाधि