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[ विविलास
है, महान् आदि सात तत्त्व तथा सोलह गरण प्रकृति की विकृति रूप हैं और पुरुष न प्रकृतिरूप है और न विकृतिरूप है । पंगुवत् प्रकृति और पुरुष का योग होता है। प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द - ये तीन प्रमाण हैं । नित्य एकान्तवाद है 1 तथा पच्चीस तत्त्वों का ज्ञान मोक्षमार्ग है । ये प्रकृति
और पुरुष का विवेक (भेद) देखने से प्रकृति में स्थित पुरुष का भिन्न होना 'मोक्ष' मानते हैं।
सातवें नास्तिक मत (चार्वाक) में देव, पुण्य-पाप और मोक्ष कुछ नहीं माने गये हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, और बायु - ये चार भूत और एक प्रत्यक्ष प्रमाण माना गया है । चारों भूतों के समवाय (संयोग) से चैतन्यशक्ति उत्पन्न होती है । जैसे मादक सामग्री के समवाय से मदर्शाक्त (नशा) उत्पन्न होती है। इनके मत में अदृश्य सुख का त्याग और दश्य सुख का भोग ही पुरुषार्थ है ।
निर्णय करने पर उपरोक्त सभी मतों में समाधि सिद्ध नहीं होती। समाधि के तेरह भेद
समाधि के तेरह भेद हैं :- १. लय, २. प्रसंज्ञात, ३. वितर्कानुगत, ४. विचारानुगत, ५. प्रानन्दानुगत, ६. अस्मिदानुगत, ७. निवितर्कानुगत, ८. निविचारानुगत, ६. निरानन्दानुगत, १०, निरस्मिदानु गत, ११. विवेकख्याति,