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समाधि का स्वरूप ]
जैमिनीय अर्थात् भाट्टमत में देव नहीं माना गया है। प्रेरणा, लक्षण, और धर्म -- ये तीन तत्त्व माने गए हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, आगम, अर्थापत्ति और अभाव - ये छह प्रमाण हैं । नित्य एकान्तवाद है। तथा वेदविहित आचरण को मोक्षमार्ग मानते हैं । नित्य अतिशय को धारण करनेवाले सुख का व्यक्त हो जाना हो 'मोक्ष' मानते है ।
सांख्य मत के बहुत भेद हैं । कोई ईश्वरदेव को और कोई कपिल को मानते हैं। पच्चीस तत्त्व हैं। राजस, तामस और सात्विक अवस्थाओं का नाम प्रकृति है । प्रकृति से महत् (महत् तत्त्व) महत् से अहङ्कार, अहंकार से पांच तन्मात्रायें और ग्यारह इन्द्रियां होती हैं।
उन पांच तन्मात्राओं में से स्पर्शतन्मात्रा से बायु, शब्दतन्मात्रा से आकाश, रूपतन्मात्रा से तेज (अग्नि), गन्धतन्मात्रा से पृथ्वी और रसतन्मात्रा से जल उत्पन्न होता है । __ स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र - ये पांच बुद्धीन्द्रियाँ तथा वाणी, हाथ, पैर, गुदा और गुप्तेन्द्रिय -- ये पांच कर्मेन्द्रियाँ तथा ग्यारहवां मन है । पुरुष अमर्त, चैतन्यस्वरूपी, कर्ता और भोक्ता है 1 मूल प्रकृति विकृतिरहित
१. प्रकृतेमहान्ततो हंकारस्तस्माद् गुणश्च वोडाकः । तस्मादपि षोडश काचम्मः पंचभूतानि ॥ (सांख्पका )