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[चिद्विलास बस्ती के समान दिखतो है और इन आठ कर्मों को देखो, ये पुदगलद्रव्य की जाति के हैं, तुम्हारे अपने अङ्ग नहीं हैं । जो-जो पौद्गलिक जातियों के नाम हैं, उन-उन जातियों के नाम चेतन ने अपने परिणामों से धारण कर लिए हैं; लेकिन वे निजस्वभाव नहीं हैं, बल्कि परकलित भाव हैं। अतः स्पष्ट है कि निज चेतना ने झूठा स्वांग धारण किया है । अतः उस परभाव रूप स्वांग को दूर करो, उसको दूर करते ही प्रत्यक्ष साक्षात् स्वभावसन्मुख स्थिर हो जावोगे, विश्राम प्राप्त करोगे तथा वचनातीत महिमा प्राप्त करोगे । यदि फिर भी कभी पर-नीच परिणाम धारण करोगे तो भी च कि चेतन राजा ने उन्हें अच्छीतरह पहचान लिया है, अतः तुम नीच से सम्बन्ध करके भी टगायोगे नहीं, बल्कि बढ़ते-बढ़ते परमपद प्राप्त करोगे, तीनों लोकों में तुम्हारी कोति प्रवर्तगी ।"१
गुरु के ऐसे वचन सुनकर ज्ञाता अपनी चेतन शक्ति को ग्रहण करता है और जहाँ-जहाँ देखता है, वहाँ-वहां उसे जड़ का नमूना दिखाई देता है लेकिन अपना पद ज्ञानज्योतिरूप अनुपम है । स्वरूपप्रकाश से अनादि विभाव का नाश होता है । अपने स्वरूप से जो दर्शन-ज्ञानरूपी प्रकाश उत्पन्न होता है, वह परपद को देख-जानकर अशुद्ध होता
१ यह प्रकरण प्रात्मावलोकन अन्ध में भी बहुत विस्तार से दिया गया है।