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भनन्त संसार कैसे मिटे ]
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है । वहाँ इतनी विशेषता है कि जहाँ रागादि परिणामरूप देखना-जानना है, वहां विशेष अशुद्धता है और जहाँ सामान्य पददशा की अपेक्षा (भूमिकानुसार) देखना-जानना है, वहाँ सामान्य अशुद्धता है । ___ चतुर्थ गुणस्थानवी जीव के एकदेश उपयोग की सम्हाल हुई है, अतः वहां उसे एकदेश शुद्धता जाननी चाहिये ।
पञ्चम गुणस्थान में अप्रत्याख्यान सम्बन्धी रागादि गये तो उतने अंश में अशुद्धता गई और स्थिरता बढ़ी, तब एकदेश स्थिरता होने पर एकदेश संघम नाम प्राप्त हुआ ।
छठवें गुरणस्थान में प्रत्याख्यान का प्रभाव हुअा, विशेष स्थिरता हुई । सकल प्राकुलताओं के कारण सकल पाप हैं, उनका अभाव हुआ; परन्तु वहाँ भी अशुभभाव गौरणतारूप से हो जाता है, लेकिन वह पापबन्ध और दुर्गति का कारण नहीं होता । वहाँ शुभभाव मुख्य है और शुद्धभाव गौण हैं, परन्तु फिर भी वह ऐसी मुख्यता को प्राप्त कराता है कि वह मुख्य जैसा ही कार्य करता है, वहाँ शुद्ध गौण होने पर भी बलिष्ठ (बलवान) है। ___ छठवें गुणस्थानवर्ती के भेदविज्ञान विचार के कारण का शीघ्रता से शुद्धोपयोगरूप सातवाँ गुणस्थान हो जाता है। शुभोपयोग में गभितशुद्धता है, अतः सातवें गुणस्थान का साधक छठवां गुणस्थान है। उपदेशादि क्रिया होती है, पर विशेष