________________
परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के उपाय ]
[ १२१
(२६) निमित्ती :-- स्वरूप प्राप्त करने में निमित्त जिनवाणी, गुरु, सहधर्मी तथा निज-विचार हैं । निमित्त सम्बन्धी जो धर्मज्ञ हैं, उन सब का हित करे।
(३०) तपसी :- परत की इच्छा को मिटाकर निजप्रताप प्रगट करे।
(३१) विद्यमान :- विद्या के द्वारा जिनमत का प्रभाव करे और ज्ञान के द्वारा स्वरूप का प्रभाव करे ।
(३२) सिद्ध :- वचन के द्वारा स्वरूपानन्दी का हित करे और संघ की स्थिरता करे । चूकि इससे स्वरूप की सिद्धि होती है, अतः उसे सिद्ध कहते हैं ।
(३३) कवि :-- स्वरूप के लिए रचना करके परमार्थ प्राप्त करता है और प्रभावना करता है । ____इन आठों के द्वारा जिनधर्म के स्वरूप का प्रभाव जैसे बड़े, वैसे करे - ये अनुभवी के लक्षण हैं।
अब छह भावनाओं का कथन करते हैं :- १. मूलभावना, २. द्वारभावना, ३. प्रतिष्ठाभावना, ४. निधानभावना, ५. आधारभावना और ६. भाजनभावना |
(३४) मूलभावना :- सम्यक्त्वस्वरूप अनुभव सकल धर्म तथा मोक्ष का मूल है, जिनधर्मरूपी कल्पवृक्ष का मूल सम्यक्त्व है - इसप्रकार भावना करे ।