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[चिदिलास इसके अनन्तर तीन शुद्धियों का कथन करते हैं :
(१८-१९-२०) मन, वचन और काय को शुद्ध करके स्वरूप की भावना भाना तथा जो स्वरूप की भावना करता हो – ऐसे पुरुष में मन, वचन और काय तीनों को लगावे तथा स्वरूप को निःशंक और निःसन्देहतया ग्रहण करे ।।
इसके बाद पांच दोषों के त्याग का कथन करते हैं :(२१) सर्वज्ञवचन को निःसन्देहतया माने । (२२) मिथ्यामत की अभिलाषा न करे।
(२३) परद्वंत की इच्छा न करे और पवित्र स्वरूप को ग्रहण करे ।
(२४) दूसरों के प्रति ग्लानि न करे और मिथ्यात्वी परग्राही द्वैत को मन से प्रशंसा न करे।।
(२५) मिथ्यात्वी के गुणों को वचनों से न कहें ।
अब सम्यक्त्व के पाठ प्रभावना-भेदों का वर्णन करते हैं :- १. अष्टप्रवचनी, २. धर्मकथा, ३. वादी, ४. निमित्तो, ५. तपसी ६. विद्यावान, ७. सिद्ध और ८. कवि ।
(२६) अष्टप्रवचनी :-सिद्धान्त के द्वारा स्वरूप को उपादेय कहे ।
(२७) धर्मकथा :- निजधर्म का कथन करे ।
(२८) वादो :-बलपूर्वक द्वैत का आग्रह छुड़ावे और मिथ्यावाद को मिटावे ।