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परमात्मस्वरूप को प्राप्ति के उपाय ]
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आगे यहां सम्यक्त्व के तीन चिह्न कहते हैं (५) जिनागमशुश्रूषा :- जिनागम में कहे गये ज्ञानमय स्वरूप को अनादि मिथ्यादृष्टिपना छोड़कर प्राप्त करना चाहिये, उसमें उपकारी जिनागम है, उसके प्रति प्रोति करे । ऐसी प्रीति करे कि जैसे कोई दरिद्रो को किसी ने चिन्तामणि दिखाया, तब उसके द्वारा चिन्तामरिण को प्राप्त किया । उससमय उस दिखानेवाले से वह दरिद्री जिसप्रकार प्रीति करता है, वैसी प्रीति जिनसूत्र से करे इस चिह्न को 'जिनागमशुश्रूषा' कहते हैं ।
(६) धर्मसाधन में परमानुराग :- जिनधर्मरूप अनन्त गुणों का विचार धर्मसाधन है, उसमें परम अनुराग करे । यह 'धर्मसाधन में परमराग' सम्यक्त्व का दूसरा चिह्न है ।
(७) जिनगुरु वैयावृत्य :- जिनगुरु से ज्ञान- श्रानन्द प्राप्त होता है, अतः उनको वैयावृत्य, सेवा और स्थिरता करना जिनगुरु वैयावृत्य' है । यह सम्यक्त्व का तोसरा चिह्न है ।
ये तीनों चिह्न ग्रनुभवी के हैं । विनयों के दस भेद कहते हैं :
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( 5 ) अरहन्त, ( ९ ) सिद्ध, (१०) आचार्य (११) उपाध्याय, (१२) साधु, (१३) प्रतिमा, (१४) श्रुत, (१५) धर्म, (१६) चतुर्विधसंघ और ( १७ ) सम्यक्त्व | इनसे स्वरूप भावना होती है ।
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