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कारण- कार्य के तीन भेद ]
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जाते हैं
के परिणाम में भेदकल्पना के द्वारा तीन भेद सिद्ध किए ( अ ) द्रव्यकारणकार्य, (ब) गुरणकारणकार्य और ( स ) पर्यायकारणकार्य ।
(a) द्रव्यकाररणकार्य :- ( १ ) द्रव्य अपने स्वभाव से स्वयं ही स्वयं का कारण हैं और स्वयं ही कार्य है अथवा (२) गुण - पर्याय कारण है और द्रव्य कार्य है, क्योंकि 'द्रव्य' गुणपर्यायवान् होता है - ऐसा सूत्र में वचन हैं । ( ३ ) पूर्वपरिणामयुक्त द्रव्य कारण है और उत्तरपरिणामयुक्त द्रव्य कार्य है । ( ४ ) अथवा 'सत् द्रव्यलक्षणम्' के अनुसार सत्ता कारण है और द्रव्य कार्य है । अथवा ( ५ ) ' द्रव्यत्व योगाद् द्रव्यम्' के अनुसार द्रव्यत्वगुण कारण है और द्रव्य कार्य है ।
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द्रव्य का कारण कार्य द्रव्य ही में है, क्योंकि द्रव्य अपने कारणस्वभाव को स्वयं ही परिणामाकर अपने कार्य को स्वयं ही करता है । यदि द्रव्य में कारण कार्य न हो तो द्रव्यपना कैसे रहे ? अतः संसार में जितने पदार्थ हैं, वे सब अपने-अपने कारण कार्य को करते हैं । ग्रतः जीवद्रव्य के कारण-कार्य से जीव का सर्वस्त्र प्रगट होता है । जो कुछ है, वह कारण कार्य ही है ।
(ब) गुणकाररणकार्य :- ( १ ) गुण को द्रव्य-पर्याय कारण है और गुण कार्य है । ( २ ) केवल द्रव्य व पर्याय ही