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[ विविलास
भाव है और सब गुणों के भाव से एक-एक गुण का भाव है, इसलिए 'भावभावशक्ति' सब गुणों में है।
गुण में द्रव्य-पर्याय का भाव है और द्रव्य-पर्याय के भाव में गुण का भाव है, अतः 'भावभावशक्ति' का कथन किया जाता है । प्रत्येक भाव में अनन्त भाव हैं और अनन्त भावों में एक भाव है । वस्तु के सद्भाव का प्रगट होना 'भाव' है । एक भाव में अनन्तरस का विलास है, उस विलास का प्रभाव प्रगटरूप से धारण करने वाली वस्तू ही के अनेक अङ्गों का वर्णन जिनदेव ने किया है । बस्तु में अनन्त गुण हैं, प्रत्येक गण में अनन्त शक्तिपर्याय हैं, पर्याय में सब गुणों का वेदन है, वेदन में अविनाशी सुखरस है और उस सुखरस का पान करने से जीव चिदानन्द अजर-अमर होकर निवास करता है।
कारण-कार्य के तीन भेद
प्रत्येक समय कारण-कार्य के द्वारा आनन्द का विलास होता है, अतः परिणाम से कारण-कार्य है।
पूर्वपरिगामरूप कारण उत्तरपरिणामरूप कार्य को करता है, अतः उसके तीन भेद एक ही कारण-कार्य में सिद्ध होते हैं । इसका कथन करते हैं :- जैसे षड्गुणी वृद्धिहानि एक ही समय में सिद्ध होती है, वैसे ही एक ही वस्तु