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[ चिविलास
भो नहीं है, परन्तु परमाणुमात्र के गज (माप) से वस्तु के प्रदेश की जन गणना की जाती है, तब उतना सिद्ध होता है । अथवा यह कहा जा सकता है कि प्रदेशों का एकत्व जैसे वस्तु का स्वरूप है, वैसे ही ज्ञान का भी स्वरूप है।
क्रम के दो भेद हैं :- १. विष्कम्भक्रम और २. प्रवाहक्रम ! विष्कम्भक्रम प्रदेश में है और प्रवाहक्रम परिणाम में है । द्रव्य में क्रमभेद नहीं होता, वस्तु के ही अंग ऐसे भेद धारण करते हैं। परन्तु क्रमभेद अंग में ही है, वस्तु में नहीं जैसे दर्पण में प्रकाश है ; वह जिसप्रकार सम्पूर्ण दर्पण में होता है, उसोप्रकार उसके प्रत्येक प्रदेश में भी होता है । प्रदेश दर्पण से पृथक् तो नहीं होते, परन्तु जब परमाणु मात्र प्रदेश की कल्पना करते हैं, तब प्रदेश में भी जाति
और शक्ति तो वैसी ही है, लेकिन संपूर्ण वस्तु – यह नाम तो सब प्रदेशों का एकत्वभाव ही प्राप्त करता है । इसी प्रकार गुण, जाति या शक्तिभेद तो प्रदेश में आते हैं, परन्तु संपूर्ण आत्मवस्तु असंख्यप्रदेशमय है । एक प्रदेश लोकालोक को जानता है, उसीप्रकार सब प्रदेश भी जानते हैं, परन्तु सब प्रदेशों का एकत्वभाव बस्तु है ।
शंका :- प्रदेश में एक गुण है और एक गण की अनन्त पर्याय हैं तो फिर एक प्रदेश में अनन्त पर्याय कैसे रह सकेंगी?