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प्रदेशस्वशक्ति ]
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जाने पर अन्तिम शरीर से किंचित् ऊन ( कम ) आकार को धारण करता है । उसके प्रत्येक प्रदेश में अनन्त गुण हैं और ऐसे असंख्यात प्रदेश लोकप्रमाण हैं । वे प्रदेश अभेदविवक्षा में प्रदेशत्वरूप और भेदविवक्षा में असंख्य तथा व्यवहार में देहप्रमाण कहे गए हैं । ये प्रदेश अवस्थान विवक्षा में लोकाय में अवस्थानरूप होकर निवास करते हैं। एक-एक प्रदेश की गणना करने पर प्रसंख्य प्रदेश हैं ।
शंका :- जिनागम में कहा है - 'लोकप्रमाणप्रदेशो हि निश्चयेन जिनागमे । अतः भेदविवक्षा में असंख्य कहने से निश्चय सिद्ध नहीं होता, क्योंकि निश्चय में भेद सिद्ध नहीं होता ?
समाधान :- भेदविवक्षा से प्रदेशों की संख्या असंख्य प्रमाण होती है, कम-ज्यादा नहीं इसप्रकार नियमरूप निश्चय जानना चाहिए ।
शंका :- एक प्रदेश में जो अनन्त गुरण हैं, वे सब प्रदेशों में हैं, अतः उन प्रदेशों में सब आए या कम आए ?
समाधान:- ज्ञान सब प्रदेशों में है । प्रदेशों को पृथक् मानने पर ज्ञान पृथक्-पृथक् सिद्ध होगा और ग्रात्मप्रदेश ज्ञानप्रमाण होने से वह भी पृथक्-पृथक् सिद्ध होगा, इसतरह विपरीत होगा । अतः वस्तु में अंशकल्पना नहीं है, गुण में