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गुण की विशेषता ]
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२. विजाति उपचार और ३. स्वजाति-विजाति उपचार - ये तीन उपचार द्रव्य, गुण और पर्याय में घटित होते हैं, अतः नौ भेद हुए । इसप्रकार स्वजाति, विजाति, स्वजाति-विजाति और सामान्य की अपेक्षा नौ-नौ भेदों को मिलाकर छत्तीस भेद हुए।
ये भेद जब ज्ञान में पाते हैं, तब ज्ञान में भी सिद्ध होते हैं । ज्ञान और दर्शनगुण चेतना को अपेक्षा स्वजाति है, लक्षण की अपेक्षा उपचार से विजाति हैं और दोनों की अपेक्षा स्वजाति-बिजाति हैं। प्रत्येक गुण सामान्यरूप से द्रव्य-गुण-पर्याय सिद्ध करता है तथा विशेष रूप से स्वजाति, विजाति एवं मिश्र को भी सिद्ध करता है । इसप्रकार प्रत्येक गण में छत्तीस भेद होते है। इसीप्रकार अनन्त गुणों में छत्तीस-छत्तीस भेद उपचार से सिद्ध होते हैं।
भेद-अभेद से द्रव्य-गुण-पर्याय सिद्ध होते हैं, यह जानना चाहिये । ज्ञान अपने स्वभाव का 'कर्ता' है । ज्ञान का भाव 'कर्म' है । ज्ञान अपने भाव से स्वयं को सिद्ध करता है, अतः स्वयं 'करण' है । अपना स्वभाव स्वयं को समर्पित करता है, अतः स्वयं 'सम्प्रदान' है । अपने भाव से स्वयं को स्वयं स्थापित करता है, अतः स्वयं 'अपादान' है । स्वयं का प्राधार स्वयं है, अतः स्वयं 'अधिकरण' है । ये छह कारक प्रत्येक गुरण में पृथक्-पृथक् अनन्त गुणपर्यन्त सिद्ध करना चाहिये ।