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[चिदविलास
से वस्तु सफल होतो है । वस्तु का उपादान अक्रम-क्रम स्वभावभावरूप है, उसके तीन भेद हैं :- १. द्रव्यभाव, २. गुणभाव और ३. पर्यायभाव ।
गुण-पर्याय के समुदायरूप भाव को 'द्रव्यभाव' कहते हैं । गुणभाव के अनन्त भेद हैं । ज्ञान द्रव्य है, जानपनेरूप शक्ति का भाव ज्ञानगुण है। ज्ञ या कार पर्याय के द्वारा जो ज्ञान होता है, वह पर्याय है । ज्ञान के भाव द्वारा तीनों सिद्ध होते हैं । भावगुण के द्वारा गुणी सिद्ध होता है, वह द्रव्यभाव है, परन्तु 'गुण के द्वारा गुणी' - ऐसा कहने से भाव ही से द्रव्य की सिद्धि हुई, और इस भाव ही से पर्याय की सिद्धि होती है। ____ गुण का जो शक्तिरूप भाव है तथा गुण का जो पर्यायरूप भाव है, उसे गुरणभाव कहते हैं।
पर्याय में परिणमन शक्ति का जो लक्षण है, वह पर्यायभाव है । प्रत्येक गुण का भाव पृथक-पृथक् है । पर्याय का वर्तमानभाव अतीतभाव से नहीं मिलता, अतोतभाव भविष्यभाव से नहीं मिलता, वर्तमानभाव भविष्यभाव से नहीं मिलता तथा भविष्यभाव वर्तमान व अतीतभाव से नहीं मिलता । जो परिणाम बर्तमान में है, उसका भाव उसी में है । इसपकार भाव को निष्पन्न रखने की सामर्थ्य का नाम 'भाववोर्यशक्ति है ।