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भाववीर्यशक्ति ]
साधन द्वारा सिद्धि होती है, उसे निष्पन्न रखने की सामर्थ्य का नाम 'व्यवहारतपवोर्यशक्ति' है, जिसके प्रभाव से अनेक ऋद्धियाँ उत्पन्न होती हैं। __ अब 'निश्चयतपवीर्यशक्ति' का स्वरूप कहते है :- तप का अर्थ है तेज और तेज का अर्थ है अपनी भासुर (तेजस्वी) अनन्तगुणचेतना को प्रभा का प्रकाश – इसे निष्पन्न रखने की सामर्थ्य का नाम 'निश्चयतपवीर्यशक्ति ' है। __ ज्ञानचेतना का स्वसंवेदन प्रकाश और स्व-परप्रकाश निजी प्रभाभार के विकास से विराजमान तेज है । इसीप्रकार दर्शन निराकार उपयोग, सर्वशित्व सामान्यचेतना के प्रभाभार के प्रकाश का तेज है । इसीप्रकार अनन्तगणों के तेजपुञ्ज के प्रभाभार के प्रकाशरूप द्रव्य का तेज है, पर्यायस्वरूप के प्रभाभार के प्रकाशरूप पर्याय का तेज है । ऐसे ही द्रव्य-गुण-पर्याय के प्रभाभार के प्रकाश को तप कहते हैं, उसे निष्पन्न रखने की सामर्थ्य का नाम 'निश्चयतपोवीर्यशक्ति ' है। (७) भाववीर्यशक्ति
जिसके प्रभाव से वस्तु प्रकट होती है, उसे 'भावबीर्यशक्ति' कहते हैं । वस्तु का सर्वस्वरस भाव है । भाव वस्तु का स्वभाव है और भाव से वस्तु का वस्तुत्व जाना जाता है । जैसे भावार्थ से अक्षरार्थ सफल होता है, वैसे ही भाव