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[चिदविलास पर्याय में है । एक पर्याय में दूसरी पर्याय की वर्तना नहीं है। पर्याय पृथक है, जिससे द्रव्य की- गुण-पर्याय के पुञ्ज की वर्तना किसी एक गुण में या किसी एक पर्याय में नहीं आती है, क्योंकि एक गुणवस्तु द्रव्यरूप नहीं हो सकती । यदि गुणपुञ्ज (द्रव्य) एक गुण में प्रावे तो गुण अनन्त होने से अनन्त द्रव्य हो जायेंगे | गुरणपुञ्जरूप द्रव्य की वर्तना को किसी एक गुण की वर्तना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि किसी एक गुण रूप द्रव्य नहीं हो सकता । गुणों का पुज गुणों के द्वारा गुणपुज में वर्तता है, उसी में द्रव्यविवक्षा से द्रव्य की वर्तना, गुरा विवक्षा से गुण की वर्तना और पर्यायविवक्षा से पर्याय की वर्तना होती है । इसप्रकार विवक्षा से अनेकांत की सिद्धि होती है।
अतः द्रव्य-गुण-पर्याय की जो वर्तना या मर्यादा या स्थिति है, उसको निष्पन्न रखने की सामर्थ्य का नाम 'कालवीर्यशक्ति' है। (६) तपवीयशक्ति
निश्चय और व्यवहार रूप दो भेदों को धारण करने की सामर्थ्य रूप तयवीयंशक्ति है।
व्यवहाररूप बारह प्रकार के तथा परिषह सहनेंरूप तप हैं । तप से कमों की निर्जरा तब होती है, जब इच्छाओं के निरोधरूप वर्तन होता है, पर-इच्छायें मिटती हैं, स्वरस का अनुभव होता है - ऐसे वास्तविक व्यवहार
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