________________
काहूके धनहानि, किसी जय हार न चीते । देय न सो उपदेश, होय अघ बनिज कृषीत ॥११॥ कर प्रमाद जल भूमि, वृक्ष पावक न विराधै। असि धनु हल हिंसोपकर, नहिं दे जस लाधै ॥ रागरोष करतार कथा, कबहुं न सुनोज । और हु अनरथदंड, हेतु अघ तिन्हैं न कीजै ॥१२॥ धर उर समता भाव सदा, सामायिक करिये । पर्व चतुष्टय माहिं पाप तजि प्रोषध धरिये ॥ भोग और उपभोग नियम करि ममतु निवारै ।
मुनि को भोजन देय फेर, निज करहि अहार ॥१३॥ ___ अर्थ-उपर्युक्त प्रकार से सम्यग्दर्शन पूर्वक सम्यग्ज्ञान को धारण कर पश्चात् सम्यक् बारित्र & को दृढ़ता पूर्वक धारण करे । सम्यक् चारित्र के दो भेव कहे गये है-एक देश चारित्र और दूसरा ४ & सकल चारित्र । पापास्रव के कारणभूत हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांचों पापों के एक
देश या स्थूल त्याग को देश चारित्र कहते हैं । इस व्रत के धारक श्रावक कहलाते हैं । मन, वचन, & काय, कृत, कारित और अनुमोदना से उन पापों को सर्वथा त्याग महावत कहते हैं। इस धारक - & मुनि कहे जाते हैं । दश चारित्र के मूल में तीन भेद हैं-अणुधत, गुगनत और शिक्षाप्रत । इनमें
अणुयत के पांच भेव, गुणपत के तीन भेद और शिक्षावत के चार भेद होते हैं। इस प्रकार ये सब मिलकर श्रावक के बारह रात कहलाते हैं । अब इनका कम से स्वरूप वर्णण करते हैं ।